‘वर्तमान संक्रांति काल में भारतीय इतिहास लेखन की उभरती नई प्रवृत्तियां तथा दिशाएं’ विषय पर सेमिनार का आयोजन
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समस्तीपुर/दलसिंहसराय :- रामाश्रय बालेश्वर कॉलेज दलसिंहसराय में शुक्रवार को स्नातकोत्तर इतिहास विभाग ऐतिहासिक अनुसंधान कोषांग तथा इतिहास संकलन समिति उत्तर बिहार के संयुक्त तत्वावधान में प्रधानाचार्य प्रोफेसर (डॉ.) संजय झा की अध्यक्षता में ‘वर्तमान संक्रांति काल में भारतीय इतिहास लेखन की उभरती नई प्रवृत्तियां तथा दिशाएं’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के राम कृष्ण द्वारिका कॉलेज पटना इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. रमाकांत शर्मा मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थे। इस दौरान डॉ. अनूप कुमार ने स्वागत भाषण किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर (डॉ.) संजय झा ने कहा कि इतिहास एक महासागर है और सभी विषय उससे समन्वय स्थापित करके ही पूर्णता को प्राप्त करते हैं। क्योंकि सभी विषयों का अपना इतिहास होता है।
उन्होंने स्थानीय लोक कला एवं संस्कृति के इतिहास लेखन पर जोर दिया क्योंकि इतिहास में अभी तक इस पर बहुत कम लेखन हुए हैं। उन्होंने अपने व्याख्यान में बताया कि घटना, समय, स्थान व व्यक्ति को इतिहास का आवश्यक अंग है। महाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. प्रतिभा पटेल ने स्वागत भाषण से कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। वहीं इतिहास विभाग के डॉ. राजकिशोर ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि इतिहास ने हमें इतिहास दिया है, हमें यूरोप केंद्रित सभी विचारधारा से अलग होकर इतिहास लिखना चाहिए।
सेमिनार को संबोधित करते हुए डॉ. रामा कांत शर्मा ने इतिहास को वर्तमान का सृष्टिकर्ता करार दिया। जर्मन विद्वान रॉके का उदाहरण देते हुए कहा कि इतिहास समसामयिक इतिहास होता है। भारत में इतिहास लेखन की कुछ नई प्रवृत्तियों की प्रकृति को उन्होंने विस्तार पूर्वक चर्चा की। उन्होंने कहा की विद्वानों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि प्राचीन काल में भारतीयों को इतिहास लेखन की समझ नही थी पर उन्होंने कल्हण की राजतरंगिणी की उदाहरण देकर उनकी इस मान्यता को खंडित किया। सच्चा इतिहास हमको मूल्यों की शिक्षा देता है। हाल के दशकों में इतिहास लेखन के चार मुख्य स्कूलों दर्ज किए गए हैं- कैम्ब्रिज, राष्ट्रवादी, मार्क्सवादी, और सबॉल्टर्न।
मार्क्सवादियों ने गांधी के आंदोलन को बूर्जुआ अभिजात्य वर्ग के एक उपकरण के रूप में देखा, जिससे उसने क्रांतिकारी ताकतों का अपने स्वयं के हित के लिए प्रयोग किया। कैम्ब्रिज विचारधारा अंग्रेज़ शासकों या यूरोसेंट्रिज़्म के नज़रिए से इतिहास बताता है। इस विचारधारा में अक्सर भारतीयों के भ्रष्टाचार और अंग्रेज़ों के आधुनिकीकरण संबंधी कार्यों को बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता है। इसलिए, इतिहास लेखन के इस स्कूल की पश्चिमी पूर्वाग्रह की आलोचना की जाती है। काार्यक्र का मधन्यवाद ज्ञापन डॉ. अभय सिंह ने किया।
सेमिनार में डॉ. विमल कुमार, डॉ. धीरज कुमार पांडेय, डॉ. अपूर्व सारस्वत, उदय शंकर विद्यार्थी, संजय कुमार सुमन, डॉ. अविनाश कुमार, डॉ. धीरज कुमार, डॉ. महताब आलम डॉ. अकील अहमद, डॉ. रोमा सिराज, डॉ. रितु किशोर डॉ. पुतुल कुमारी, जूही, डॉ. श्रुति सिंह, डॉ. शिवानी प्रकाश, डॉ. विनोद सिंह, डॉ. शैलेश कुमार तथा काफी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थीं।