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धीरे-धीरे जनता हो रही समझदार, सोच-समझकर करेगी मतदान

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समस्तीपुर/विभूतिपुर [विनय भूषण] :- मौसम का मिजाज सबको पता है कि यह स्वाभाविक रुप से गरम है। विभूतिपुर विधानसभा क्षेत्र में लोकतंत्र के महापर्व को लेकर हर तरफ प्रशासनिक तैयारी जोरों पर है।आलाधिकारियों से लेकर कर्मियों तक अपनी ड्यूटी में अस्त-व्यस्त हैं। राजनीतिक सुरमाओं से लेकर प्रत्याशियों, नेताओं और कार्यकर्ताओं के पसीने छूट रहे। राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी लोक लुभावन वायदे को लेकर लोगों में छींटाकसी का दौर भी है। कुछ आंकड़े, कुछ तथ्य तो कुछ मुफ्त की सलाह भी…।

मतदाता जागरुकता और जनसंपर्क चरम पर…। चिलचिलाती धूप में हम नरहन घूम रहे। वर्ष 2024 का लोक सभा चुनाव है तो हालचाल जानने में थोड़ी-बहुत तपिश तो होगी हीं। हम दीवान बहादुर कामेश्वर नारायण महाविद्यालय नरहन के मुख्य द्वार पर पहुंच चुके हैं। चढ़ते सूर्य के साथ इक्का-दुक्का लोग दिख रहे। यहां पर राजस्थान के परमेश्वर पीपल की छांव में कुल्फी, आइसक्रीम, अमेरिकन ड्राई फ्रूट, फालूदा आदि बेच रहे। हमने कुल्फी का आर्डर किया। इनके पास अन्य आइटम में सलेक्ट करने के लिए ज्यों ही मेरे जुबां से ‘चुनाव करना पड़ेगा’ शब्द निकला कि ये बोल पड़े मदारियों ने सबको नचा रखा है।

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देखिए, भैया…हम रुपए कमाने के लिए अपना घर परिवार छोड़कर नरहन में किराए का मकान लेकर रहते हैं। दुकानदारी के वक्त ग्राहक भी राजनीति की भाषा बोल रहे। दिन में टाइम मिलता नहीं तो रात में अपने गांव फोन करके पूछे हैं। लोग बता रहे कि इस बार कुछ कहा नहीं जा सकता है। इस बीच बगल में हीं ठेला लगाए खदियाही के राज कमल और नरहन के अंशु बोल पड़े कि थोड़ा हमरे तरफ भी देखिएगा। गोलगप्पा बेच रहे हैं। शाम तक पाकेट में दो-तीन सौ रुपए आ जाए तो बड़ी बात है।

ठेला लगाए रमेश ने अपनी ओर बुलाने का इशारा नजरों से करते हुए कह दिया कि तनी हमरो तरफ ध्यान दीजिएगा। ककरी बेच रहे हैं। पेट के लिए ठंडा भी होगा और पौष्टिक भी। एक छोटा ककरी दररते हुए कालेज कैंपस में मेरी इंट्री होती है। बीएड बिल्ड्रिंग के तरफ टाइल्स का कुछ काम चल रहा। लाइब्रेरी में अध्यक्ष तेजनारायण यादव और देव कुमारी दिखे। मजदूरों की अपनी व्यथा है। कुछ छात्राएं दोस्तों के साथ कुछ बातें करते कैंपस से निकल रहे।

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हम प्रिंसिपल चेंबर की तरफ रुख करते हैं। यहां पर प्राचार्य, अन्य प्रोफेसर और अतिथि शिक्षकों ने शायद, पहले से हीं ‘लोकतंत्र में मतदान की महत्ता’ विषय पर चर्चा कर रखी थी। हम भी शामिल हो जाते हैं। डा. यश रंजन कहते हैं कि व्यक्ति और समाज के बाद हीं देश का विकास हो सकता है। हमारे महत्वपूर्ण वोट से सरकार बनेगी। इसलिए मतदान बहुत जरुरी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, रोजगार आदि की बेहतरी के लिए अच्छे व्यक्तित्व को चिह्नित कर वोट करने होंगे। क्योंकि, समाज की भलाई के प्रति समर्पित व्यक्ति हीं योजनाओं का लाभ जन-जन तक पहुंचा सकता है।

प्रो. शशिशेखर द्विवेदी इसमें हामी भरते हुए अपनी बात जोड़ते हैं कि सही मायने में देखें तो जनता की समस्या और विकास हीं चुनावी मुद्दे होने चाहिए। स्थानीय ज्वलंत मुद्दे को इश्यू बनाकर वोटिंग होना चाहिए। कद, पद या व्यक्तिगत प्रभाव को साफ दरकिनार कर देना बेहतर होगा। हां, इसके लिए अंतर्रात्मा और विवेक का प्रयोग जरुरी है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए अधिकाधिक मतदान होना चाहिए। हम लोगों ने जागरुकता भी तो फैलाई है। अब, बातचीत के दौरान मुद्दा गहराता जा रहा है।

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डा. सुमित कुमार नई शिक्षा नीति की चर्चा कर देते हैं। कहते हैं कि इस क्षेत्र में बहुत काम करने की जरुरत है। महंगी शिक्षा का दौर आ गया है। शिक्षकों और संसाधनों की कमी है। सरकारें काम से अधिक ढिंढोरा पीट रही है। इससे काम नहीं चलने वाला है। कालेजों में सीटें वही हैं। बच्चों की संख्या बढ़ी है। मगर, इसके मुताबिक प्रोफेसर नहीं हैं। डा. कुमार हेमंत नारायण खुद को रोक नहीं पाते हैं। कहते हैं कि शिक्षकों की कम संख्या के कारण सेमेस्टर सिस्टम फेल हो रहा है। बिहार के 13 यूनिवर्सिटी यह दंश झेल रही है। अतिथि शिक्षकों का विगत 11 माह का भुगतान नहीं होने से हालत खराब है।

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प्रो. कुमोद कुमार कहते हैं कि समान अहर्ता रखने वालों को सरकार दो तरीके अतिथि और नियमित रुप से बहाल कर रही है। यह नीति छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। आधारभूत संरचना का अभाव शिक्षा को बदहाल कर रही। पटना यूनिवर्सिटी के एक पत्र का जिक्र करते हुए कहते हैं कि कई पदों को समाप्त किया जा रहा है। प्रो. शशि कुमार शायराना अंदाज में कहते हैं कि साफ-साफ कहिए न कि जिनके व्यक्तित्व में नहीं हो खोंट, उनको इस बार मेरा वोट…चेंबर में ठहाके लगते हैं। इन्होंने जिनके पास ‘विजन’ हो, उन्हें वोट करने की नसीहत दी।

तभी डा. अन्नु कुमार सुधांशु ने लोकसभा चुनाव के लिए वास्तविक मुद्दे और इस पर काम करने वाले व्यक्तित्व को चिह्नित कर वोट करने की सलाह दे दी। कहते हैं कि गरीबों को वोट बैंक के रुप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। इनकी भलाई के लिए रोजगार, भूखे को भोजन, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, योजनाओं को पहुंचाने वालों की दरकार है। आजादी के बाद से अब तक अपेक्षाकृत व्यवहार और इंसाफ इनके साथ नहीं हो सका है।

खाने-पीने के समानों पर भी सरकार ने भारी-भरकम टैक्स लगा दी गई है। जीएसटी से लोग परेशान हैं। पढ़े-लिखे और बेरोजगार युवा-युवतियां के लिए अब, भक्ति-भजन और घड़ीघंट बजाने का ब्राइट फ्यूचर है। इतने में नहीं होगी तो किसी दल में पदधारक और झंडा धमा हीं दिया जाएगा। कहते हैं कि सरकार ने कई जनकल्याणकारी योजनाएं चला रखी है। इसका लाभ लेने की दिशा में कम लोग हीं दिलचस्पी दिखा रहे। जबकि, सरकारें अपनी पिटारा खोलकर रखने की बातें कह रही। तभी प्राचार्य कक्ष में थानाध्यक्ष आनंद कश्यप की इंट्री होती है। इन्हें भी कुर्सी दी जाती है। कक्ष में प्राचार्य, प्रोफेसर और पत्रकार के बीच गहन चर्चा के विषय में जानने की उत्सुकता थानाध्यक्ष ने दिखाई। प्राचार्य ने अवगत कराया।

उन्होंने बीच में दखल देने की बातें कहकर पुलिस फोर्स को कालेज बिल्डिंग में ठहरने को 12 कमरे की जरुरत पर जानकारी ली। प्राचार्य ने उन्हें आवश्यक जानकारी और सुझाव दिया। डीएम योगेन्द्र सिंह द्वारा मतदान कार्य एवं केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल को ठहरने के लिए कालेज अधिग्रहण किए जाने संबंधी पत्र और प्राचार्य द्वारा लनामिवि को अपने स्तर से भेजे गए पत्र पर बातें हुई। चाय-नाश्ता के बाद थानाध्यक्ष कक्ष से बाहर निकले।

प्राचार्य प्रो. दिनेश कुमार राम ने चाय-नाश्ता को रिचार्ज होने की बातें कहकर चर्चा में अपनी हस्तक्षेप की। अब तक सवाल और मंतव्य को सुन रहे थे। ये कहते हैं कि लोकसभा चुनाव को लेकर मतदान व्यवहार पर काफी बातें हुई हैं। मगर, चर्चे में कई महत्वपूर्ण चीजें छूट रही। हम लोगों को यह भी जानना जरुरी है कि देश की आजादी के समय राजनीतिक पार्टियों के चरित्र और अब की पार्टियों के चरित्र में बहुत अंतर है। पहले गरीबों, शोषितों, वंचितों, किसानों, व्यापारियों की समस्याओं और दर्द को समझा जाता था।

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इसके निदान के लिए प्रयास किए जाते थे। आज राजनीति को व्यवसाय के रुप में अपनाई जा रही है। स्पष्ट शब्दों में कहें तो हमारे देश का भविष्य गलत पटरी पर जा रही है। इस पर सोचना अत्यंत आवश्यक है। हर एक क्षेत्र में राजनीति नहीं होनी चाहिए। सरकार और जनता के बीच की कड़ी को राजनीति होती है। इसलिए इसे जनता हीं ठीक कर सकती है। राजनीति में युवाओं की सक्रिय भागीदारी होनी चाहिए। कालेज प्रशासन ने मतदाता जागरुकता फैलाई है। प्राचार्य समेत सभी मुस्कुरा कर धन्यवाद करते हैं और वेलकम करते हुए हम अन्य खबरों की खोज में कैंपस से निकल पड़ते हैं। मन में यह बात आई कि अब जनता समझदार हो रही है। इस बार सोच-समझकर हीं मतदान करेगी।

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