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सदर अस्पताल में नहीं सुधर रही व्यवस्था; रोस्टर और समय से नहीं आते हैं अधिकांश डॉक्टर, एक या दो ड्यूटी कर महीने भर की बनती है हाजरी

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समस्तीपुर :- समस्तीपुर सदर अस्पताल में डॉक्टरों की ड्यूटी रोस्टर का पेंच नहीं सुलझ रहा है। रोस्टर ड्यूटी बनने के बावजूद डाक्टर के ड्यूटी पर नहीं होने से मरीजों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। कागज पर भले ही डॉक्टरों की रोस्टर ड्यूटी लगी हो, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। सदर अस्पताल का आलम यह है कि अधिकांश डॉक्टर सप्ताह में एक या दो दिन ही ड्यूटी करते हैं। लेकिन उनकी उपस्थित सभी दिन दर्ज होती है।

डॉक्टरों की नियमित उपस्थिति के लिए नए एसओपी मानक के अनुसार रोस्टर की ड्यूटी बनाई गई। जिसमे कम से कम प्रत्येक सप्ताह 48 घन्टे की ड्यूटी रोस्टर को तैयार कर दिया गया। लेकिन व्यवस्था पहले वाली ही है। कोई डॉक्टर सप्ताह में एक या दो ड्यूटी करते हैं तो कोई सप्ताह में लगातार 24 घंटे की ड्यूटी करने के बाद नजर नहीं आते हैं। डयूटी रोस्टर के अनुसार जब मरीज संबंधित डॉक्टर को खोजते पहुँचते हैं तो डॉक्टर नही मिलते और वापस लौट जाते हैं।

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सीसीटीवी की जांच से खुल सकता पोल :

डॉक्टरों की निगरानी के लिए सदर अस्पताल के इमरजेंसी से लेकर ओपीडी में सीसीटीवी लगाया गया। ताकि यह पता लग सके की कौन डॉक्टर कब आ रहे हैं और कब जा रहे हैं। इसके बावजूद डॉक्टर का आना-जाना अपने समय अनुसार ही होता है। जिसके कारण ओपीडी में मरीजों को इंतजार करना मजबूरी हो गई है। वही इमरजेंसी में एक ही डॉक्टर कई दिनों तक ड्यूटी करते हैं, जिसकी जांच से भी डॉक्टरों की ड्यूटी रोस्टर खुलासा हो सकता है।

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बोर्ड पर नहीं रहता है नाम अंकित :

सदर अस्पताल की इमरजेंसी एवं प्रसव कक्ष में मरीजों की जानकारी के लिए सूचना बोर्ड भी लगाया गया है। जहां ऑन ड्यूटी डॉक्टर व कर्मचारियों का नाम अंकित होना है। प्रसव कक्ष में डॉक्टरों एवं कर्मियों के नाम भले ही अंकित रहता है। लेकिन इमरजेंसी में लगे बोर्ड में डॉक्टर व कर्मियों का नाम अंकित नही होता है। जिससे किन डॉक्टर व कर्मियों की ड्यूटी है इसका अंदाजा किसी को नहीं मिल पाता है।

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बाइट :

‘सभी चिकित्सकों को अपने रोस्टर के अनुसार ड्यूटी करने का आदेश दिया गया है। साथ ही ओपीडी में भी निर्धारित समय से आने को कहा गया है। जो डॉक्टर विलंब से आते हैं, उनसे जवाब भी पूछा जाता है। कभी-कभी इमरजेंसी होने पर ही ड्यूटी का एक्सचेंज होता है।’

– डॉ गिरीश कुमार, डीएस, समस्तीपुर

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