समस्तीपुर : बिहार सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वर्ष 2016 में बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत की। इस योजना के तहत छात्र – छात्राओं को चार लाख रुपए तक की आर्थिक सहायता दी जाती है। जिसमें पुरुषों के लिए ब्याज दर चार प्रतिशत, जबकि महिला, ट्रांसजेंडर एवं दिव्यांग के लिए एक प्रतिशत ब्याज पर लोन उपलब्ध कराया जाता है। इस रकम को कोर्स पूरा कर नौकरी पाने के बाद भुगतान करना होता है।लेकिन इस योजना में भी बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा किया गया।
ऐसा ही एक मामला समस्तीपुर जिले से सामने आया है, जहां कल्याणपुर प्रखंड के मालीनगर स्थित ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ पारा मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च संस्थान के द्वारा 117 छात्र-छात्राओं के नाम पर जारी 1.73 करोड़ रुपए के शिक्षा लोन का फर्जीवाड़ा किया गया। 25 जनवरी 2020 से इस शिक्षण संस्थान के प्राप्त सभी आवेदन की प्रोसेसिंग पर रोक लगा दी गई थी। वहीं फर्जीवाड़ा उजागर होने के बाद इस संस्थान के अध्यक्ष, सचिव, प्राचार्य और थर्ड पार्टी वेरीफिकेशन एजेंसी पर प्राथमिक दर्ज करने का आदेश दिया गया है।
क्या है पूरा मामला ज़रा विस्तार से समझिए :
ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ पारा मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च मालीनगर संस्थान के निदेशक डॉ. सागिर अली के द्वारा वर्ष 2018 में ग्रीन वैली अस्पताल में किराये के भवन में संस्थान कीी शुरुआत की गई। जिस उद्देश्य के लिए भवन किराये पर लिया गया था उस तरह की कोई एक्टिविटी नहीं होने और समय पर किराया नही देने के कारण 2020 के नवंबर – दिसंबर महीने में खाली करा दिया गया। मकान मालिक का बताना है कि संस्थान के ऊपर किराये की लगभग छह लाख रुपये की राशि भी बची है। जिसका भुगतान उनके द्वारा अब नही किया गया है।
मकान मालिक का कहना है कि इस संस्थान के खुलने के पूर्व इस भवन में ग्रीन वैली अस्पताल का संचालन होता था जो वर्ष 2017 के आखिरी महीने में बंद हो गया था। मकान कई महीने तक खाली पड़े रहने के बाद डॉ. सागिर अली को संस्थान खोलने के लिए किराये पर दिया था। मकान मालिक का बताना है कि इस दौरान कुछ बच्चे कभी कभार आते थे। डॉ. सागिर अली भी यहां रहते थे। वहीं इस संस्थान के निदेशक डॉ. सागिर अली और मकान मालिक के बयान में भी विरोधाभास है।
संस्थान के निदेशक डॉ. सागिर अली का कहना है कि ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ पारा मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च की शुरुआत 2003 में पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. शकील अहमद के द्वारा इसका उद्घटान किया गया था। जो समस्तीपुर शहर के काशीपुर में संचालित था। बीच के कुछ वर्षों में संस्थान बंद रहा। बाद में वर्ष 2017 में मालिनगर में शुरू की गई। इस संस्थान में पारा मेडिकल के अलग-अलग कोर्स में सत्र 2018 – 19 में जिन छात्रों ने नामांकन लिया उनमें 50 प्रतिशत बच्चे स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना से लोन लिए थे।
वहीं सत्र 2019 – 20 में भी इस योजना के तहत आधे बच्चों ने लोन लिया। इनमें बेगूसराय के 83, समस्तीपुर के 23, मुजफ्फरपुर और दरभंगा के 3-3, सारण के 2, गया, सीवान और मधेपुरा के 1-1 छात्र हैं। इनके नाम शिक्षा लोन के तहत 1.14 करोड़, बुक एवं स्टेशनरी और लीविंग एक्सपेंस के नाम पर 59.72 लाख रुपए इनके खाते में भेजे गए थे। संस्थान के निदेशक का कहना है कि दोनों की सत्र में एक एक वर्ष ही छात्रों को योजना का लाभ मिल सका। लोन की राशि भुगतान नही होने के बाबजूद भी उनके संस्थान के द्वारा बच्चों की पढ़ाई पूरी करा कर यूनिवर्सिटी के द्वारा एग्जाम कंडक्ट करा रिजल्ट भी दे दिया गया।
उनका कहना है कि फिलहाल संस्थान में अलग अलग कोर्सेस में बच्चे पढ़ाई कर रहे है। लेकिन कोई भी छात्र – छात्राएं इस योजना के तहत लोन नहीं लिया है। सरकार के द्वारा 2018 – 19 और 2019 – 20 सत्र में मात्र एक – एक वर्ष का ही भुगतान बच्चों को मिला। इस योजना के तहत संस्थान के द्वारा फर्जीवाड़ा किंये जाने के बाद शिक्षा विभाग के द्वारा प्राथमिकी दर्ज किए जाने के आदेश को लेकर संस्थान के निदेशक का कहना है कि इस संबंध में उंन्हे कोई जानकारी नही है। बाद में उंन्हे जानकारी मिली कि बिना उंन्हे पूर्व सूचना दिए विभाग के द्वारा उनकी अनुपस्थिति में संस्थान का औचक निरीक्षण किया गया और कमियों को बताकर एफआईआर का आदेश दिया है जो बिल्कुल गलत है। वहीं सागिर अली का कहना है कि पारा मेडिकल के अलग-अलग पाठ्यक्रम में प्रेक्टिकल के लिये उसी भवन में ग्रीन वैली हॉस्पिटल का संचालन उनके द्वारा किया जा रहा था।
वहीं स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के तहत इस संस्थान के द्वारा फर्जीवड़े की जांच के बाद डीपीओ लेखा एवं योजना को इन सबके विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया गया है। लेकिन अब तक इनके विरुद्ध थाने में एफआईआर दर्ज नही कराई गई है। हैरान करने वाली बात है कि संस्थान के द्वारा धोखाधड़ी कर योजना का लाभ लिए जाने की बिहार राज्य शिक्षा वित्त निगम के प्रतिकूल टिप्पणी के बाद राज्य परियोजना प्रबंधन इकाई की जांच रिपोर्ट के आधार पर प्रभारी पदाधिकारी नसीम अहमद के द्वारा डीपीओ सह नोडल पदाधिकारी बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना को आदेश जारी कर संस्थान के अध्यक्ष, सचिव, प्राचार्य और थर्ड पार्टी वेरिफिकेशन एजेंसी M/S Peregrine Guarding Pvt. Ltd पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश जारी किया गया। लेकिन डीपीओ के द्वारा इनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई गई।
वहीं इस मामले में सज्जन राजासेकर अपर सचिव सह नोडल पदाधिकारी बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के द्वारा एफआईआर पर रोक लगाते हुए दुबारा जांच कराने का आदेश जारी कर दिया गया। इस संबंध में समस्तीपुर कज डीएम रोशन कुशवाहा का कहना है कि इस संबंध में पूर्व में एक जारी किया गया था। जिसमें संस्थान के ऊपर प्राथमिक दर्ज करने का आदेश दिया गया था। लेकिन विभाग के द्वारा एक अन्य आदेश जारी किया गया जिसमें प्राथमिक की पर रोक लगाते हुए दुबारा जांच करने का निर्देश दिया गया है। इसके लिए एक कमेटी का गठन किया गया है जो 15 दिनों में अपनी रिपोर्ट देगी। जिसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। ऐसे में बड़ा सवाल है कि संस्थान के ऊपर धोखाधड़ी को लेकर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश जारी किये जाने के बाद दुबारा जांच करने का निर्देश दिये जाने के पीछे आखिर मंशा क्या है ?
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