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समस्तीपुर: हाथ­ के हुनर पर मशीन भारी, बढ़ई समाज से जुड़े लोगों के पलायन की मजबूरी

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समस्तीपुर :- जिले में बढ़ई समाज से जुड़े लोगों की संख्या करीब आठ लाख 98 हजार है। ब्रांडेड कंपनियों का बाजार, मशीन आधारित काम और पूंजी संकट से उन्हें काफी नुकसान हुआ है। काम के अभाव में दो लाख से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं। कारीगरों का दर्द है कि सरकारी योजनाओं का लाभ भी उन्हें नहीं मिल रहा है। उनकी मांग है कि प्रशासनिक स्तर पर सार्थक पहल होनी चाहिए। आजादी के बाद से अब तक बढ़ई समाज की आर्थिक उन्नति नहीं हो पाई है। यह समाज अपने को उपेक्षित महसूस कर रहा है।

इसके कल्याण के लिए सरकार से ठोस नीति नहीं बन पा रही है। इनकी पीड़ा यह है कि सरकार इस समाज की समस्या को गंभीरता से नहीं सुन रही है। विश्वकर्मा काष्ट शिल्पी विकास समिति के प्रदेश महासचिव शिवपूजन ठाकुर ने बताया कि जिले में आठ लाख 98 हजार से अधिक इस समाज की आबादी है। जिनमें 98 प्रतिशत मजदूर हैं। हुनर रहते काम नहीं मिलने के कारण जिले से दो लाख 33 हजार बेरोजगार होकर पलायन कर चुके हैं। करीब 40 हजार कामगारों का परिवार हैं। 0.2 प्रतिशत लोगों को ही सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सका है।

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सभी काष्टकर्मी को बिहार भवन व संनिर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में निबंधित नहीं हैं। जबकि लगातार इस मांग पर जोर दिया जा रहा है। इस समिति की जो भी मांगें सरकार में रखी गई थीं, उन मागों को अब तक पूरा नहीं किया गया है। शीशम की लकड़ी की उगाही पर शोध जरूरी है ताकि लोग शीशम की लकड़ी लगाएं। तब उचित लकड़ी मिलेगा और बढ़ई मजदूरों को रोजगार मिलेगा। राम भरोश शर्मा कहते हैं कि पिछले पांच सालों में किसी को ऋण नहीं मिला है। जबकि बिना गारंटी के ऋण मिलना चाहिए था। अधिकांश कामगारों के पास पूंजी का अभाव है। पैसे के अभाव की वजह से समाज के 90 प्रतिशत लोग अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं दिला पाते हैं। ये लोग अशिक्षित हैं।

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मशीनरी आधारित रोजगार को बढ़ावा मिलने से इनके परम्परागत रोजगार धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं। अधिकतर कामगार हुनर रहते हुए भी बेरोजगार होते जा रहे हैं। जिला से तेजी से इनका पलायन होता जा रहा है। महिलाओं को भी घर के अंदर काम नहीं मिल रहा है। हाथ आधारित रोजगार छीनता जा रहा है। जिला में लकड़ी के सरकारी टेंडर में वन विभाग की मनमानी खूब चलती है। अच्छी लकड़ियां पैरवी- पैगाम वाले लोग ले लेते हैं। जबकि सड़ी गली लकड़ियां इस समाज के कामगारों को उपलब्ध कराई जाती हैं। पुलिस वाले भी उन्हें बिना अधिकार के ही उनकी लकड़ी बीच रास्ते में भी पकड़ लेती है, जबकि उनके पास वैध लकड़ियां रहती हैं। जिससे उनका कारोबार प्रभावित होता है।

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वन अधिनियम में कई ऐसी धाराएं अभी भी लागू ही हैं। जिसमें वर्तमान समय में बदलाव करने की आवश्यकता है। लेकिन सरकार कुछ सुनने को तैयार नहीं है। अपने वाजिब हक के लिए समाज के लोग कई बार प्रदर्शन भी कर चुके हैं फिर भी नतीजा शून्य ही रहा। शिव पूजन ठाकुर, राम भरोश शर्मा, शत्रुध्न शर्मा बताते हैं कि समाज की वाजिब मांगों को लेकर विश्वकर्मा काष्ट शिल्पी विकास समिति वर्षो से आंदोलित है। सरकार फर्नीचर व पारंपरिक काष्ट कलाकृति निर्माण करने वाली लकड़ियों के उत्पादन को कृषिनीति में शामिल करते हुए रैयतों को प्रोत्साहित करते हुए अनुदान देने की नीति सरकार नहीं बना रही है। इस समाज मे 98 प्रतिशत लोग भूमिहीन हैं। जिसमें 96 प्रतिशत लोग मजदूर व अपने पैतृक पेशा पर निर्भर हैं।

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बाइट :

बढ़ई के लिए प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना है। इस योजना के तहत, कारीगरों और शिल्पकारों को वित्तीय सहायता, कौशल प्रशिक्षण, और आधुनिक उपकरण मुहैया कराए जाते हैं। इस योजना के तहत मिलने वाले लाभ में कौशल सत्यापन के ज़रिए कौशल उन्नयन बुनियादी और उन्नत कौशल प्रशिक्षण, 15 हजार रुपये तक के टूलकिट प्रोत्साहन व 3 लाख रुपये तक का ऋण उपलब्ध कराया जाता है। इस योजना का लाभ लेने के लिए, कारीगर और शिल्पकार आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर पंजीकरण करा सकते हैं। पंजीकरण के लिए, अपना मोबाइल सत्यापन और आधार ई-केवाईसी पूरा करना होगा।

-विवेक कुमार, महाप्रबंधक, जिला उद्योग केंद्र

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