समस्तीपुर : मार्च खत्म होने वाला है। स्कूल ने फिर फीस बढ़ा दी है। निजी स्कूलों की मनमानी बेलगाम हो रही है। हर साल स्कूल फीस में 15 से 20 फीसदी बढ़ोतरी कर रहे हैं। अप्रैल में नया सत्र शुरू होने वाला है। स्कूलों ने नया फीस स्लैब जारी कर दिया है। फीस में बढ़ोतरी देख अभिभावकों का विरोध भी शुरू हो गया है। जिले के बड़े स्कूलों की फीस में सालाना 15 से 20 हजार रुपए तक की बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में अभिभावक अब फीस भरने की जुगाड़ में जुट गए हैं। वहीं, दूसरी ओर सीमित आय और पढ़ाई का खर्चा बढ़ने से घर का बजट बिगड़ रहा है। ‘Samastipur Town Media’ से के दौरान अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने वाले अभिभावकों ने अपनी समस्या बताई।
समस्तीपुर जिले में लगभग 700 के करीब प्राइवेट स्कूल संचालित हैं। वहीं शिक्षा विभाग के अनुसार 594 स्कूल जिलेभर में रजिस्टर्ड हैं। बाकी स्कूल बगैर रजिस्ट्रेशन ही चलाए जा रहे हैं। जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग प्राइवेट स्कूलों की मनमानी करने के बाद भी मूकदर्शक है। इसका फायदा प्राइवेट स्कूल वाले खूब ले रहे हैं। कई निजी विद्यालयों द्वारा री-एडमिशन के नाम पर भारी भरकम शुल्क लिया जा रहा है, जो कि पूरी तरह से अवैध है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत किसी भी विद्यार्थी का उसी स्कूल में दोबारा प्रवेश (री-एडमिशन) लेने की आवश्यकता नहीं होती। बावजूद इसके, कई निजी स्कूल अनावश्यक रूप से छात्रों से री-एडमिशन फीस के नाम पर हजारों रुपये वसूल रहे हैं। कई अभिभावकों का कहना है कि अगर वे इस फीस का भुगतान नहीं करते, तो उनके बच्चों को स्कूल से बाहर करने की धमकी दी जाती है।
जिले में सैकड़ों की संख्या में प्राइवेट स्कूल संचालित हैं। विद्यार्थियों को लाने व ले जाने के लिए उनके पास स्वयं की बस, टैक्सी एवं अन्य परिवहन के संसाधन हैं। पर स्कूल वाहनों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी की जा रही है। अधिकांश वाहनों में सुप्रीम कोर्ट के गाइड लाइन का पालन नहीं किया जा रहा है। हर साल जिले में प्राइवेट स्कूलों की संख्या में वृद्धि हो रही है। स्कूल खोलते वक्त बच्चों की सुरक्षा के लिए आश्वस्त कर एवं आकर्षक विज्ञापन देकर लुभाया जाता है। इसके चक्कर में फंस कर अभिभावक अपने नौनिहालों को उनके हवाले कर देते हैं। इसके बाद शोषण होना शुरू हो जाता है। सुरक्षा के मानकों की धज्जियां उड़ा कर स्कूल वाहनों में भेड़-बकरियों की तरह नौनिहालों को बैठा कर स्कूलों तक पहुंचाया जाता है।
स्कूल संचालकों ने अपनी सुविधा के अनुसार बुक स्टॉल सेट करके रखे हैं, उन्हीं की दुकानों पर उनके स्कूलों का कोर्स उपलब्ध है। यूनिफार्म के लिए भी दुकानें निर्धारित हैं, जो अपनी मनमर्जी के हिसाब से यूनिफार्म बेच रहे हैं। बच्चों के अभिभावक विरेंद्र यादव ने बताया कि कपड़ा व्यापारी स्कूल संचालकों को शिक्षण सत्र प्रारंभ होने से पहले ही उन्हें उनका कमीशन पहुंचा देते हैं। इस तरह कोर्स और यूनिफार्म जिले भर में गिनी-चुनी दुकानों पर ही बेची जा रही है। एक अभिभावक ने बताया कि किताबें खास दुकान से खरीदने का दबाव है। बाकी दुकानों पर अभिभावकों को सारी किताबें नहीं मिलती हैं। चिह्नित दुकानों में ही किताब का पूरा सेट मिल पाता है। यह व्यवस्था खत्म होनी चाहिए।
जिले में संचालित अधिकांश स्कूलों द्वारा हर साल सिलेबस बदल दिया जाता है ताकि सीनियरों की किताब से जूनियरों का काम नहीं चले बल्कि उन्हें नई किताब खरीदनी पड़े। विरोध करने पर स्कूल के मालिकों व प्राचार्यों द्वारा नाम काटने की धमकी तक मिल जाती है। अभिभावक ने बताया कि स्कूल प्रबंधकों द्वारा स्कूल का नाम अंकित कॉपी खरीदने का दबाव दिया जाता है। यह कॉपी पर लिखित मूल्य पर ही मिलता है। जबकि सामान्य कॉपी हॉलसेल में खरीदने पर 15 से 20 प्रतिशत तक की छूट मिल जाती है। इसी तरह कई स्कूलों द्वारा निर्धारित काउंटरों से ही ड्रेस, टाई व बेल्ट खरीदने को कहा जाता है। निर्धारित दुकान पर ड्रेस की काफी कीमत रहती है। जिले के 10 से 20 स्कूल ही ऐसे हैं जो मानकों पर खड़े हैं।
1. नामांकन के नाम पर 10 से 15 हजार चार्ज किया जाता है।
2. सेशन बदलने के नाम पर दुबारा नामांकन कराया जाता है।
3. स्कूल द्वारा निर्धारित दुकान से ही किताब और कॉपी खरीदवायी जाती है।
4. स्कूल ड्रेस, टाई, बेल्ट व अन्य सामान भी निर्धारित दुकान से ही लेना अनिवार्य रहता है।
1. सेशन बदलने के बाद दुबारा नामांकन कराना बंद हो।
2. अभिभावकों पर बच्चों की किताब अपने मन से, किसी भी दुकान से खरीदने का छूट हो।
3. स्कूल द्वारा चयनित किए गए दुकान से ही पाठ्य व अन्य सामग्री खरीदवाना बंद हो।
4. अक्सर स्कूल के ड्रेस आदि में बदलाव नहीं किया जाए।
प्राइवेट स्कूलों में एनसीईआरटी या बीटीसी की किताबें ही पढ़ाई जानी चाहिए। महंगी किताबें से स्कूल संचालक लोगों की जेबें ढीली कर रहे हैं। विद्यालय में ही काउंटर लगाकर कॉपी किताब खरीदने का दबाव बनाया जाता है। ड्रेस भी निश्चित जगह पर ही मिलता है।
– विरेंद्र यादव
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बेहतर शिक्षा के नाम पर मनमानी फीस वसूली जाती है जिस पर जिला प्रशासन का अंकुश नहीं है। निजी विद्यालयों में हो रहे शोषण पर सभी मौन हैं।
– मंटू कुमार
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ड्रेस टाई बेल्ट के नाम पर प्राइवेट स्कूलों द्वारा अवैध वसूली की जाती है। 20 रुपये के समान को 100 रुपये तक लिया जाता है। जिला प्रशासन को इस पर रोक लगाने की आवश्यकता है।
– राजेश कुमार
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गिनी-चुनी दुकानों पर ही किताबें और यूनिफॉर्म उपलब्ध है। जबकि नियम से एनसीईआरटी की किताबों से स्कूलों में पढ़ाई होनी चाहिए। जबकि मनमानी फीस ज्यादा परेशान करती है।
– गौरव कुमार
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जिला प्रशासन द्वारा निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए टीम गठित हो। प्रशासन को मनमानी रोकने के लिए पहल करनी चाहिए।
– अनील कुमार
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निजी विद्यालय द्वारा अभिवावकों का आर्थिक शोषण किया जाता है। एडमिशन फीस और किताब और कॉपी में लूट है।
– नंद किशोर गुप्ता
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किताब बिक्री में कमीशन का खेल समाप्त होना चाहिए। गरीब बच्चों का एडमिशन मुफ्त में होना चाहिए। निजी स्कूलों में प्रत्येक वर्ष पुनः नामांकन, विकास फंड एवं मिसलेनियस के नाम पर तथा ड्रेस और कॉपी-किताब के नाम पर मोटी रकम की वसूली की जाती है। फिर भी पढ़ाई के लिए बच्चों को ट्यूशन देनी पड़ती है।
– सुहानी यादव
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अभिभावकों पर बच्चों की किताब अपने मन से किसी भी दुकान से खरीदने की छूट हो। स्कूल द्वारा चयनित की गई दुकान से ही पाठ्य व अन्य सामग्री खरीदवाना बंद हो।
– गंगा प्रसाद
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आरटीई के नाम पर खानापूर्ति हो रही है। अधिकारी और प्राइवेट स्कूल मिले हुए हैं। गरीब बच्चों को नामांकन में काफी परेशानी होती है।
– आदित्य राज
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री-एडमिशन का खेल बंद हो। शिक्षा विभाग के अधिकारी और प्राइवेट स्कूल मिले हुए हैं। शिकायत करने पर स्कूल से धमकी मिलती है।
– अमरजीत कुमार
अगर अभिभावकों के द्वारा निजी विद्यालयों के संबंध में शिकायतें की जाती है, तो निश्चित तौर पर उन संबंधित निजी विद्यालयों पर विभाग सख्ती से नियमानुसार कार्रवाई करेगी। कोई भी निजी विद्यालय री-एडमिशन के नाम पर बच्चों के गार्जियन को परेशान नहीं करेंगे।
– कामेश्वर प्रसाद गुप्ता, जिला शिक्षा पदाधिकारी, समस्तीपुर
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