वृंदावन की होली के नाम से प्रसिद्ध है रोसड़ा के भिरहा की होली, कई राज्यों के लोग होते हैं शामिल
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समस्तीपुर/रोसड़ा :- रोसड़ा प्रखंड के भिड़हा गांव की होली अपनी विरासत को अक्षुण्ण रखने व समय के साथ आधुनिकता से लैश करने के पीछे ग्रामीण कोई कोर कसर बांकी नहीं छोड़ना चाहते। दो दिवसीय होली महोत्सव की तैयारियां अपने अंतिम पड़ाव पर है। पूरा भिड़हा गांव तोरण द्वारों व बिजली के झालारों से आच्छादित करने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य चल रहे हैं। वहीं गांव के तीनों टोलों में समारोह को लेकर तैयारियां भी की जा रही है।
अलग-अलग टोलों के लिए गठित कमिटियां प्रतिस्पर्धा के भाव से लबरेज हैं। तभी तो तीनों टोलों में काफी बढ़-चढ़ कर तैयारियां चल रही है। उत्तरवारी टोल के राममोहन राय एवं संटू राय ने बताया कि भगवती पोखर स्थित मंदिर परिसर , उत्तरवारी टोला के गुडडू बाबा ने बताया कि हरि मंदिर परिसर तथा पछियारी टोला के रामबोल राय ने बताया कि हरि मंदिर परिसर को आकर्षक ढंग से सजाया जा रहा है व पंडाल निर्माण का कार्य चल रहा है।
पूर्व की तरह तीनों स्थानों पर अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित होना है। गांव में इस महोत्सव को लेकर हर्षोल्लास का वातावरण बना हुआ है। विरासत से चली आ रही परंपरा के निर्वहन को जीवंत बनाये रखने व पूरे सूबे में भिड़हा गांव को राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान दिलाने के लिए ग्रामीण कटिबद्ध है। तीनों टोलों के आयोजन समितियों से मिली जानकारी के मुताबिक इस बार के होली महोत्सव में जबलपुर के श्याम बैंड और विशाल बैंड व राजस्थान के प्रकाश बैंड के बीच मुकाबला होगी। इसके अलावे बनारस, कलकत्ता व मुजफ्फरपुर से पहुंचने वाली नृत्यांगनाओं की टीम सांस्कृतिक कार्यक्रम को एक अलग पहचान दिलाएगी।
मुगलकाल से ही है परंपरा :
ग्रामीणों की मानें तो मुगलकाल में ही मधुबनी जिला के अरेर से नीलकंठ झा और मणिकांत झा यहां आए थे। उन्हीं की संतति जब वृंदावन गए तो वहां के होली महोत्सव को देख अपने गांव में भी उसी तर्ज पर होली मनाने की ठान ली। तब से पीढ़ी दर पीढ़ी ग्रामीण अपनी इस विरासत को बनाये रखने के लिए तत्पर रहे हैं।
अनूठे अंदाज में होलिका दहन :
होलिका दहन का आयोजन भी अनूठा है।होलिका दहन के अवसर पर लाखों की संख्या में लोग जुटे रहते हैं। इस अवसर पर बैंड पार्टियों में प्रतियोगिता आयोजित है, जिसका घंटों प्रदर्शन किया जाता है। तत्पश्चात होलिका दहन की जाती है। प्रतियोगिता में अव्वल आने वाले बैंड पार्टी को पुरस्कृत भी किया जाता है।
ब्रज के तर्ज पर हो रही है होली :
भिरहा गांव की होली करीब ढ़ाई सौ वर्षों से आज भी ब्रज के तर्ज पर हो रही है। यहां की होली को देख राष्ट्रकवि दिनकर ने इसे बिहार के वृंदावन का दर्जा दिया था। होली के दो स्प्ताह पूर्व से ही गांव में उत्सव का माहौल कायम रहता है। होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन की संध्या से ही पूरब, पश्चिम एवं उत्तर टोले में निर्धारित स्थानों पर अलग-अलग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन जारी रहता है। दूर-दूर से आए मशहूर बैंड के बीच कलाकारों के बीच कंपीटीशन होता है।
कई हस्तियां पहुंच चुकी हैं भिड़हा में :
भिड़हा के अनूठी होली का गवाह बनने राष्ट्रकवि दिनकर, महाकवि आरसी, महाकवि आचार्य सुरेन्द्र झा सुमन के अलावे राजनीतिक हस्तियों में कर्पूरी ठाकुर, जगन्नाथ मिश्र, विन्देश्वरी दूबे, जगजीवन राम, रामविलास पासवान आदि पहुंच चुके हैं।
हजारों लोग रहते हैं उपस्थित :
प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले को पुरस्कार से भी नवाजा जाता है। इस दौरान क्षेत्र के हजारों लोग उपस्थित रहते हैं। बड़े-बड़े तोरण द्वार और चमचमाती रोशनी के बीच सम्पूर्ण गांव पूरी रात जगमगाहट रहती है। होली के दिन भी नृत्य का आनंद लेने के पश्चात तीनों टोली दोपहर बाद गांव में स्थित फगुआ पोखर पहुंचते हैं। जहां पूरे गांव के रंगों की पिचकारी से पोखर के पानी को गुलाबी रंग किया जाता है। इसके पश्चात गाने की धुन पर एक-दूसरे को रंग डालकर जश्न मनाते हैं। भिरहा की होली न सिर्फ मिथिलांचल में बल्कि प्रदेश स्तर पर इसकी एक अलग पहचान है।
1935 से परंपरा की शुरुआत :
गांव के लोगों ने बताया कि 1935 में गांव के कई गणमान्य लोग एक साथ होली देखने वृंदावन गए थे। वहां की होली ने उनका मन मोह लिया और वहां से लौटने के पश्चात ग्रामीणों द्वारा कुछ अहम निर्णय लिए गए। निर्णयों पर वर्ष 1936 से भिरहा में ब्रज की तर्ज पर होली उत्सव मनाना प्रारंभ किया। उसके बाद वर्ष 1941 में यह गांव तीन भागों में बंटकर होली मनाने लगा।
भिड़हा की होली को मिले राजकीय महोत्सव का दर्जा : विधायक
रोसड़ा अनुमंडल के भिड़हा की होली को राजकीय महोत्सव का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर स्थानीय भाजपा विधायक बीरेन्द्र कुमार ने बिहार विधानसभा में अपनी मांग रखी है।