रुला रही गर्मी; बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि “हर साल जेठ का महीना तपता है तभी आषाढ़ बरसता है” लेकिन अब मौसम के साथ नहीं बैठ रहा तालमेल
तस्वीर : बूढ़ी गंडक नदी से
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समस्तीपुर :- जेठ महीने की भीषण गर्मी व लू के थपेड़ों ने आम आदमी का जीना मुहाल कर दिया है। दिन निकलने के साथ ही आसमान से आग के गोले बरसने लगते हैं। ऐो में बिजली की हालत भी बिगड़ने लगी है। बिजली नहीं रहने से नल जल का हाल भी बदहाल है। इस कारण लोगों को नहाने धोने की कौन कहे समय पर प्यास बुझाने के लिए शुद्ध पेयजल भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। जिधर देखिये उधर ही लोग बेचैनी का सामना करते दिखते हैं।
भीषण गर्मी के कारण इलाके में ताल, तलैया, पोखर, पइन आदि भी सूखने के कगार पर है। इस कारण पशुपालक किसान भी दुखदाई स्थिति का सामना करने को विवश हैं। खेती किसानी करने वाले किसान पटवन को लेकर चिंतित हैं। बारिश आई और चली गई। खेतों में पानी का नामोनिशान नहीं है। बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि हर साल जेठ का महीना तपता है तभी आषाढ़ बरसता है। पहले बिजली भी नहीं थी लेकिन पोखर, कुआँ, पेड़ पौधे की बहुतायत थी जिससे लोग मौसम के साथ तालमेल बिठा लेते थे। वर्तमान समय में पुराने संसाधन धीरे धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। आधुनिक संसाधन के साथ लोग जीने के आदि हो गए हैं उसमें कमी होते ही बेचैनी बढ़ जाती है और जीना दूभर हो जाता है।